Sunday, March 12, 2023

कर्तव्य (duty)

संसार में सभी का कोई न कोई कर्तव्य है , चाहे वह माता हो ,पिता हो ,भाई हो ,गुरु हो, शिष्य हो ,बेटा हो या देश का कोई भी पद का कर्मचारी हो , सभी का कोई न कोई कर्तव्य है | 

केवल कर्तव्य तक सीमित  नहीं रहना चाहिए हमें कर्तव्य से बढ़कर करना चाहिए , अधर्म ,अन्याय ,अत्याचार  का प्रतिकार भी आना चाहिए | अधर्म , अन्याय , अत्याचार को देखकर भी मुँह मोड़ लेने वाले पाप के भागी बनते है | 

महाभारत में शकुनि व दुर्योधन अधर्मी होते हुए भी स्वर्ग में स्थान पा गए थे , जिसे देखकर पांडव भी हतप्रभ रह गए थे | शकुनि और दुर्योधन को यह स्थान उनके एक निष्ठ कर्तव्य पालन की वजह से ही मिला था | वही कर्ण, भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य आदि लोग महापुरुष होते हुए भी अधर्म , अन्याय , अत्याचार का विरोध न कर मुँह मोड़ लिए जिससे वो पाप के भागी बने |  शुद्ध अन्तः करण से कर्तव्यों का निर्वहन करने वाला जिन्दा रहे या मृत्यु को प्राप्त हो वह लोक  में ही नहीं परलोक में भी उत्तम गति को प्राप्त होता है | 

कर्तव्य केवल धन अर्जन के लिए ही नहीं होता वरन आप के अंदर सेवाभाव के साथ  औरो के लिए निष्काम समर्पण भावना भी होनी चाहिए | 

प्रभु श्री राम के पूर्वज राजा हरिश्चंद्र अपने धर्म व कर्तव्य का पालन करते हुए अपना राज पाट दान कर दिए व अपने ही राज्य से निकाला भी  मिल जाता है | अपने कर्तव्य व धर्म का पालन करते हुए स्वर्ण मुद्रा दान में देने के लिए वे और उनकी पत्नी  अपने आप को धन के बदले बेच देते है , व गुलाम बन जाते है | राजा हरिश्चंद्र अपने आप को एक चांडाल के यहाँ बेच देते है | उनको एक डोम का कर्तव्य मिलता है , एक दिन उनकी पत्नी अपने साँप डसे मरे पुत्र रोहिताश को लेकर शमशान आती है | दोनों लोगो का रंग रूप बदल जाता है | हरिश्चंद्र  बातो से अपने पत्नी व पुत्र  को पहचान लेते है ,फिर भी विचलित नहीं होते है | व अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपनी पत्नी से शवदाह का कर मांगते है ,पत्नी के पास कुछ नहीं था | फिर भी वो अपने कर्तव्य से नहीं डिगे व  कर स्वरुप अपने पत्नी से साडी को फाड़ कर देने को कहा उनकी पत्नी तारा ने जैसे आँचल फाड़ा सृष्टि थम जाती है |

 व सत्यदेव (धर्मराज ) व सभी देवता प्रकट हो जाते है व उनके पुत्र को जिन्दा कर देते है | उनकी परीक्षा ले रहे विश्वामित्र भी उनको उनका राज पाट वापस कर देते है | 

लेखक ;-कर्तव्य पथ से ___रविकांत यादव 

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Tuesday, March 7, 2023

सुदर्शन चक्र (the divine weapon)

सुदर्शन चक्र एक अस्त्र था | जिसका शाब्दिक आशय है , अच्छा व भला ,सरलता से देखे जाने योग्य | 
शिव पुराण अनुसार देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा ने सूर्य देव के ताप ,चमक व अभेद राख को लेकर इसका निर्माण  किया था | व इसे शिव जी को दे दिया , शिव ने विष्णु व विष्णु से देवताओ को यह मिला | 
सुदर्शन चक्र की चमक प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है ,व उसके घूमने की गति समय का प्रतीक है | चन्द्रवंशी श्री कृष्ण को यह अग्निदेव के कहने पर वरुण देव ने दिया था | यह जिस पर भी प्रयोग किया जाता था , सुदर्शन चक्र के घूमने की गति के साथ समय ब्रह्माण्ड भी तेजी से घूमने लगता था , जिससे इस तरह जिस पर भी यह प्रयोग किया जाता था ,उसका समय पूरा हो जाता था | 

इसका ही प्रयोग करके श्री कृष्ण ने  कुरुक्षेत्र में समय को  रोक कर अर्जुन को गीता ज्ञान दिया था | 
यह दिव्यास्त्र अचूक होता था ,जो हवा के संपर्क में आने पर भयंकर लपटे भी फेकता था | 
देवता इसे बहुत ही गोपनीय रखते थे | तथा जरुरत पड़ने पर एक देवता इसे दूसरे देवी -देवता को दे देता था | 

  लेखक;- तप से ___रविकान्त यादव 
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खेल -खिलाडी (energy on path )

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