केवल कर्तव्य तक सीमित नहीं रहना चाहिए हमें कर्तव्य से बढ़कर करना चाहिए , अधर्म ,अन्याय ,अत्याचार का प्रतिकार भी आना चाहिए | अधर्म , अन्याय , अत्याचार को देखकर भी मुँह मोड़ लेने वाले पाप के भागी बनते है |
महाभारत में शकुनि व दुर्योधन अधर्मी होते हुए भी स्वर्ग में स्थान पा गए थे , जिसे देखकर पांडव भी हतप्रभ रह गए थे | शकुनि और दुर्योधन को यह स्थान उनके एक निष्ठ कर्तव्य पालन की वजह से ही मिला था | वही कर्ण, भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य आदि लोग महापुरुष होते हुए भी अधर्म , अन्याय , अत्याचार का विरोध न कर मुँह मोड़ लिए जिससे वो पाप के भागी बने | शुद्ध अन्तः करण से कर्तव्यों का निर्वहन करने वाला जिन्दा रहे या मृत्यु को प्राप्त हो वह लोक में ही नहीं परलोक में भी उत्तम गति को प्राप्त होता है |
कर्तव्य केवल धन अर्जन के लिए ही नहीं होता वरन आप के अंदर सेवाभाव के साथ औरो के लिए निष्काम समर्पण भावना भी होनी चाहिए |
प्रभु श्री राम के पूर्वज राजा हरिश्चंद्र अपने धर्म व कर्तव्य का पालन करते हुए अपना राज पाट दान कर दिए व अपने ही राज्य से निकाला भी मिल जाता है | अपने कर्तव्य व धर्म का पालन करते हुए स्वर्ण मुद्रा दान में देने के लिए वे और उनकी पत्नी अपने आप को धन के बदले बेच देते है , व गुलाम बन जाते है | राजा हरिश्चंद्र अपने आप को एक चांडाल के यहाँ बेच देते है | उनको एक डोम का कर्तव्य मिलता है , एक दिन उनकी पत्नी अपने साँप डसे मरे पुत्र रोहिताश को लेकर शमशान आती है | दोनों लोगो का रंग रूप बदल जाता है | हरिश्चंद्र बातो से अपने पत्नी व पुत्र को पहचान लेते है ,फिर भी विचलित नहीं होते है | व अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपनी पत्नी से शवदाह का कर मांगते है ,पत्नी के पास कुछ नहीं था | फिर भी वो अपने कर्तव्य से नहीं डिगे व कर स्वरुप अपने पत्नी से साडी को फाड़ कर देने को कहा उनकी पत्नी तारा ने जैसे आँचल फाड़ा सृष्टि थम जाती है |
व सत्यदेव (धर्मराज ) व सभी देवता प्रकट हो जाते है व उनके पुत्र को जिन्दा कर देते है | उनकी परीक्षा ले रहे विश्वामित्र भी उनको उनका राज पाट वापस कर देते है |
लेखक ;-कर्तव्य पथ से ___रविकांत यादव
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