ईश्वर हमारे अंदर होते है , एक नास्तिक बुरे आस्तिक से अच्छा है | भगवान और शैतान हमारे मन में ही है | अधर्म ,अन्याय ,अत्याचार ,बुराई ,मासाहार ,धोखा ,चोरी कर हम शैतान की पूजा करते है | वही सत्य , धर्म ,न्याय , अच्छाई का रास्ता चुनकर हम भगवान की पूजा करते है |
बुराइयो में लिप्त रहो और भगवान की पूजा करो ?, साधु वेश धारण कर लो ? ऐसा कर्म ईश्वर के लिए मात्र कर्मकांड व स्वांग है , इसका कोई फल नहीं मिलता |
पक्षी चहकते है ,जीव दुलार करते है , ये उनकी भावना है | पत्ते डोलते है ,ये उनका धन्यवाद बोलने का तरीका है , वृक्ष हमें फल ,ऑक्सीजन देते है ये उनका कर्म है | उसी प्रकार ईश्वर हमें अच्छाइयों के प्रति अपनी भावना से बिना देखे बिना बोले हमें कर्मफल प्रदान करते है , प्राणियों की सेवा भाव में ही ईश्वर है |
लेखक;-अबाध्य ........ रविकांत यादव for more click ;-https://againindian.blogspot.com/
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